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Ghazal

हिसारे जात से बाहर निकल के देखते हैं
चलो खुद का नज़रिया हम बदल के देखते हैं …
सफर का शौक है हम को कहीं भी ले चलो तुम
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर चल के देखते हैं….
ज़माने को बदलना तो नहीं वश में हमारे
खुद अपने आप को ही हम बदल के देखते हैं ….
किसी को फिक्र है कितनी चलो ये आज़माएँ
खिलौनों के लिए हम भी मचल के देखते हैं…
भला ये कौन है जो तीरगी से लड़ रहा है
अँधेरों से ज़रा बाहर निकल के देखते हैं….
चलो मौका मिला है दिल की हसरत पूरी कर लें
तुम्हारे साथ भी कुछ पल टहल के देखते हैं….
लकीरें हाथ की शायद बदल ही जाएँ मेरी
ज़रा सा वक़्त के साँचे में ढल के देखते हैं ….

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