Site icon Saavan

हम अपना हाल-ए-दिल

हम अपना हाल-ए-दिल आपसे कहते रहे,
बेगाना आप हमको जाने क्यों समझते रहे।

आज तक कोई सबक पढ़ा न ज़िंदगी में,
आपकी आँखों में जाने क्या हम पढ़ते रहे।

इक अरसा हो गया, हम मिल न सके आपसे,
इक मुलाक़ात के इंतज़ार में तनहा मरते रहे।

न हुई सुबह, न कभी रात शहर-ए-दिल में,
कितने ही सूरज उगे, कितने ही ढलते रहे।

अनजानी राहों में चलते रहे उनकी तलाश में,
चलना ही है नसीब हमारा, सो हम चलते रहे।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

Exit mobile version