जब ज़माने ने उसको सताया होगा,
मेरा नाम कैसे होंठों में दबाया होगा।
सवालों की जब झड़ी लगी होगी,
जवाब में कैसे मुझको छुपाया होगा।
कहीं कोई तलाश न ले कमरा उनका,
मेरी नज़्मों को ये सोच जलाया होगा।
कहीं किसी ने देख तो न लिया होगा,
जब मेरा अक्स अश्कों में छाया होगा।
कर लूँ कबूल जुल्म-ए-इश्क़ करने का,
इक बार तो ये ख़्याल उसे आया होगा।