जिंदगी कैसे – कैसे जली देखो,
कुंदन – सी 1 निखर चली देखो।
ख़िज़ाँ-दीदा2 काँटों से सँवर कर,
गुलशन हो गई मेरी गली देखो।
मीठी मोहब्बत की तासीर 3 में घुल,
निबोली बनी, मिस्री की डली देखो।
ज़माने की ज़िद-ओ-जुल्म सहकर,
गुंचा 4 हो गई, खिलती कली देखो।
रात भर अँधेरे से आँख मल कर,
सहर5 हो गई, कितनी हँसी देखो।
1. स्वर्ण-सी; 2. पतझड़ से गुज़रा हुआ; 3. गुण; 4. बंद कली; 5. सुबह।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना