लो आ गया,
गर्मी का मौसम
दहकता सूरज,
चिलचिलाती धूप,
उमस दोपहर,
बहता लूं…..
बहता पसीना,
लगता गुस्से में लाल है सूरज,
मानो कह रहा हो सूरज,
बुराई अब कम करो तुम मानव,
सच्चाई को मत रोको तुम मानव,
सीखो कुछ इनु बेजुबानो से तुम,
लड़ाई ईर्ष्या द्वेष किस बात की मानव,
फिर तो सबको एक दिन जाना है,
मिलकर रहने में ही भलाई है मानव |