त्यौहारों का देश हमारा, पर्व अनेक हम मनाते है
हर उत्सव में संदेश अनेक है, विश्व को हम बतलाते हैं
अब पौष मास में निकल धनु से, मकर में सूरज आया है
और संग अपने लौहरी एवम् मकर सक्रांति लाया है
सक्रांति आते ही हर छत पर, रौनक छाने लगती है
हर बच्चे को सुबह सुबह, याद छत कि आने लगती है
रंग बिरंगी डोर पतंग से, आसमां को सजाते है
और अपने अरमानों को, पंख भी संग लगाते है
हर बुजुर्ग इसी दिन बचपन, को फिर से जी सकता है
खा कर तिल गुड, पेंच लगा कर, यादें ताजा कर सकता है
दान धर्म करने का इससे, शुभ अवसर ना आता है
हर कोई बिना गंगा स्नान ही, पुण्य प्राप्त कर पाता है
लेकिन पक्षियों के लिये यह , त्यौहार बड़ा सिरदर्दी है
हर पतंग की डोर उनके, लिए बड़ी बेदर्दी है
साथ ही इस दिन हर माँ को, चिंता यही सताती है
भागे बच्चा छत पर अकेला, इस बात से वह घबराती है
अनेकाएक रंगो से है, जैसे एक आसमान सजा
बिना कोई भेदभाव के, इसका पतंग उस छत पर गिरा
राम रहीम की पेंच बहाने, पतंग गले लग जाती है
मौज मस्ती सदभाव की क्रांति, सक्रांति फैला जाती है