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muskuraahat ke siwa

मुस्कुराहट के सिवा कुछ शक्ल दिखलाता नहीँ. हाले दिल की कैफियत  कोई  समझ  पाता नहीँ.      ग़म लिपटता है  हमेशा जिस्म से  कुछ इस तरह   पास  रहती  है  खुशी   पर  मैं नज़र   आता नही.  वक्त़ तू साथी उसी का है जो इब्न-अल- वक्त़ है      ऐसा   लगता   है   शराफ़त   से  तेरा   नाता नहीँ.       क्या सँभलता  वो ग़रीबी के जो ख़ंदक मॆं गिरा    चाह कर भी अब  ज़मी पर  पाऊँ रख पाता नहीँ.                                                   खुश्क   पत्ते   जैसी  है "आरिफ" तेरी ये ज़िन्दगी    तेज़  आवारा   हवाओं    को   तरस  आता  नहीँ.   आरिफ जाफरी

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