Site icon Saavan

मुस्कुराता हूँ

मुस्कुराता हूँ ग़म को, लिखता जाता हूँ,
क़त्ल कर जिंदगी को, मैं जीता जाता हूँ।

पन्ने पलटता हूँ जब जिंदगी की किताब के,
तेरा नाम ही, हर वरक़1 पर मैं पाता हूँ।

जो बातें रह गई थीं अधूरी हमारे दरमियान2,
वक्त-बेवक़्त उन्हीं को बस मैं गुनगुनाता हूँ।

क्या है इश्क़, इसका इल्म3 तो नहीं है हमें,
हर जगह तुम्हें ही बस साये-सा मैं पाता हूँ।

ख़ुशी के परिंदे उड़ गए, छोड़ मेरे मकाँ को,
ग़म के घोंसले हर तरफ़ फैले हुए मैं पाता हूँ।

बुलाते हैं अक्सर वो भी हमें अपनी बज़्म4 में,
ग़ैरत5 इतनी है मुझमें कि जा नहीं मैं पाता हूँ।

1. पन्ना; 2. बीच में; 3. ज्ञान; 4. महफ़िल; 5. स्वाभिमान।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

Exit mobile version