ओ रैना, तुझे मैं क्या कहूं?
रात कहूं, रैना कहूं या निशा कहूं,
मिलता है दिल को सुकून, साये में तेरे,
मिट जाती है सारी थकान, साए में तेरे,
प्यारे लगते हैं नजारे, जब टिमटिमाते हैं तारे,
खेलता है चंदा भी अठखेलियां, बादलों संग,
सो जाते हैं सभी निंद्रा के आगोश में.
भूलकर अपने सारे गम,
ओ रैना, तुझे मैं क्या कहूं?
रात कहूं रैना कहूं या निशा कहूं,
लिए दिन भर की थकान,
काम की भागा दौड़ी में,
आ जाते हैं सभी संगी
एक छत के नीचे में,
क्यों तुम्हें समझते हैं सभी
कि तुम्हारी नहीं कोई औचित्य,
दूरियां मिट जाती है अपनों की अपनों से,
सपने सुंदर बुनती हैं इन रात के अंधेरे में,
ओ रैना, तुझे मैं क्या कहूं ?
रात कहूं, रैना कहूं या निशा कहूं |