प्यासी धरती
है पुकार रही
बादल तू बरस
न गरज
बस तू बरस
हो रोम रोम
पुलकित मेरा
खिले अंकुर नया
मिले नवजीवन
इन फूलों को
इन पौधों को
खिल जाए यह चमन
इंद्रधनुषी रंगों से
मिले खुशियां
मेरे चमन को
मेरे बच्चों को
है कपूत कितने मेरे
पर मैं कुमाता नहीं
थी उपजाऊ
मिट्टी कभी मैं
पर इन्होंने तो मुझे
बंजर है बना दिया |