Site icon Saavan

Retirement का सुकून ……..!

 

Ab sukoon aa gayaa hai 150113 by Vijayanand V Gaitonde

Retirement  का  सुकून  ……..!

अब सुकून आ गया है जिन्दगी मे थोडा,
जब से मैंने औरों संग दौड़ना है छोडा…
जब से मैंने औरों जैसा दौड़ना है छोडा…

अब तो वक्त मिल रहा है, कुछ तो ख़ुद के वास्ते,
सोचने, मैं कौन हूँ  और  कौन से हैं रास्ते…..

लग रहा है सब नया, जो दृष्टि कुछ नयी मिली,
पहले जैसी दुनिया भी है, लगती अब नई नई ……

भा रहा निसर्ग जैसे स्वर्ग ही यथार्थ ये,
मुक्त मन जो हो गया है, व्यर्थ के स्वगर्व से,
मुक्त मन जो हो गया है, अर्थहीन स्वार्थ से …..

वक्त जो गुजर गया है, उसकी न परवाह है,
हाथ मे समय बचा है, पल पल उससे प्यार है ….

हूँ अलिप्त मैं मगर, सर्व में जुटा हुआ,
दलदलों में देख कमल, सुंदर सा जी रहा……..

अब जो राहें चल रहा हूँ, कुछ तो ख़ुद चुनी हुईं,
हर छलांग पे यहाँ हैं, मंजिलें नयीं नयीं……

बाजी ख़ुद से है यहाँ, इंसान पूर्ण बनने की,
दिन-ब-दिन नया नया प्रयोग, ख़ुद ही करने की……

है कठिन ये राह फिर भी चलने में सुकून है,
ना किसीसे दोस्ती न दुश्मनी की शर्त है……

पास कुछ नहीं जो मेरे, खोने का मैं भय धरूँ,
ज्ञान ये हुआ कि ज्ञान ही बटोरता फिरूं……

ये है ऐसी राहें, जिनको भी मेरी तलाश है,
मंजिलें ये ऐसी, जिनको मेरा इंतजार है,
मंजिलें ये ऐसी जो मेरे ही आसपास हैं……

अब सुकून आ गया है जिन्दगी मे थोडा,
जब से मैंने औरों संग दौड़ना है छोडा…
जब से मैंने औरों जैसा दौड़ना भी छोडा……

“ विश्व नन्द “

 

Exit mobile version