Listen Shiv Stuti
मुक्ति स्वरूप अनंत अनादि
समर्थ शाश्वत सर्वत्र व्यापी
निर्गुण निरीह निर्विकल्प नमामि
जटा में सुशोभित मोक्ष प्रदायिनी
मैं उस ईश्वर को नमन करता हूँ जो मुक्ति का स्वरूप, अनंत (जिसका कोई अंत नहीं) और अनादि (जिसका कोई आरम्भ नहीं) है। वह सर्वसमर्थ, शाश्वत (सनातन), और सभी जगह विद्यमान हैं। वह निर्गुण (प्रकृति के गुणों से परे), निरीह (इच्छारहित) और निर्विकल्प (सभी संदेह और द्वंद्व से मुक्त) हैं, और उनकी जटाओं में गंगा सुशोभित हैं, जो मोक्ष प्रदान करती हैं।
कपाली कामारी कल्पान्तकारी
सर्वज्ञ सदाशिव तुम सर्वव्यापी
कोटि काम कान्ति के स्वामी
शंभू स्वयंभू सहचर भवानी
हे प्रभु! आप कपाल धारण करने वाले (कपाली), कामदेव का विनाश करने वाले (कामारी) और संपूर्ण सृष्टि के प्रलयकर्ता (कल्पान्तकारी) हैं। आप सब कुछ जानने वाले (सर्वज्ञ), सदैव कल्याण करने वाले और समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं। आप करोड़ों कामदेवों की कांति के भी स्वामी हैं, अर्थात सर्वश्रेष्ठ मनोहर स्वरूप आपका ही है। आप कल्याणकारी शंभू, स्वयं-प्रकट (स्वयंभू) और माँ भवानी (पार्वती) के सनातन साथी हैं।
दीर्घेश्वर कामेश्वर कल्याणकारी
मृत्युंजय महेश्वर तुम मृगपाणी
जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति से परे हो
आदियोगी, तुरीय हो, तुरीय हो
आप दीर्घायु प्रदान करने वाले (दीर्घेश्वर), कामनाओं के ईश्वर (कामेश्वर) और सभी का कल्याण करने वाले हैं। आप मृत्यु को जीतने वाले (मृत्युंजय), महेश्वर और हाथ में हिरण धारण करने वाले (मृगपाणी) हैं। आप जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति – तीनों ही चेतना की अवस्थाएँ – उनसे भी परे हैं। आप ही आदियोगी (सबसे पहले योगी) हैं और तुरीय (चौथी, परम चैतन्य) अवस्था के स्वरूप हैं।
महाकाल विकराल करुण कृपाला
नीलकंठ में राजे मुण्डों की माला
रामेश्वर ओंकारेश्वर नाथ नागेश्वर
जपूँ मैं, जपूँ मैं, पञ्चाक्षर परमेश्वर
हे प्रभु! आप महाकाल (काल के स्वामी), विकराल (भयानक रूप धारण करने वाले) और साथ ही अत्यंत करुणामय और कृपालु हैं। हे नीलकंठ! आपके गले में मुंडों की माला शोभित है। आप रामेश्वर, ओंकारेश्वर और नागों के नाथ (नागेश्वर) हैं। हे परमेश्वर! मैं आपके पवित्र ‘ॐ नमः शिवाय’ इस पंचाक्षरी मंत्र का बार-बार जप करता हूँ।
प्रचण्ड प्रगल्भ पशुपति परमेश्वर
गंगाधर, जटाधर, आदि धनुर्धर
त्रयंबक त्रिपूरांतक तुम त्रिशूलपाणी
भजूँ मैं, भजूँ मैं, पावन पिनाकपाणि
हे उग्र (प्रचण्ड), शक्तिशाली (प्रगल्भ) सभी प्राणियों के स्वामी (पशुपति)! आप गंगा को धारण करने वाले (गंगाधर), जटाओं को धारण करने वाले (जटाधर) और सबसे पहले धनुष को धारण करने वाले (आदि धनुर्धर) हैं। आप तीन नेत्रों वाले (त्र्यंबक), त्रिपुर का अन्त करने वाले (त्रिपुरांतक) और त्रिशूल धारण करने वाले (त्रिशूलपाणी) हैं। हे पवित्र पिनाक धनुष को धारण करने वाले (पिनाकपाणि), मैं आपका ही बार-बार भजन करता हूँ।
निराकार ओंकार वेदस्वरूपा
तुम हो कालातीत आदि रूपा
महारुद्र महादेव मोहापहारी
कृपा हो, कृपा हो, त्रिनेत्रधारी
आप बिना साकार रूप के (निराकार) होते हुए भी ओंकार और वेदों के स्वरूप हैं। आप काल से परे (कालातीत) और सबसे आदि मूल रूप (आदि रूपा) हो। आप महारुद्र (विनाश के देवता), देवों के देव (महादेव) और मोह को हर लेने वाले (मोहापहारी) हैं। हे तीन नेत्र धारण करने वाले (त्रिनेत्रधारी), मुझ पर कृपा दृष्टि बनाए रखो।
घृष्णेश्वर योगेश्वर केदार कामेश्वर
भैरव भीमाशंकर विश्वनाथ सोमेश्वर
हरो हर विकार त्रिलोक के स्वामी
प्रसन्न हो, प्रसन्न हो, श्मशानवासी
आप करुणा के स्वामी (घृष्णेश्वर), योग के स्वामी (योगेश्वर), हिमालय के स्वामी (केदारनाथ) और कामदेव को जीतने वाले (कामेश्वर) हैं; आप रौद्र रुपी (भैरव), भीमासुर का संहार करने वाले (भीमाशंकर), समस्त ब्रह्मांड और चन्द्रमा (सोम) के स्वामी हैं। हे तीनों लोकों के स्वामी! आप मेरे सभी विकारों और पापों को हर लें (नष्ट कर दें)। हे श्मशान में निवास करने वाले प्रभु! मुझ पर सदा ही प्रसन्न हों।
हरिहर शंकर मल्लिकार्जुन मंगलेश्वर
वैद्यनाथ वृषभारूढ़ विजयी विश्वेश्वर
आशुतोष अभ्यंकर, तुम अविनाशी
नमन हो, नमन हो, कैलाशवासी
हे कल्याणकारी शंकर, आप भगवान विष्णु (हरि) और माता पार्वती (मल्लिका) जी के साथ सभी का मंगल करते हैं; आप रोगों का नाश करने वाले (वैद्यनाथ), वृषभ (नंदी) पर सवार (वृषभारूढ़), सदा विजयी और समस्त विश्व के ईश्वर (विश्वेश्वर) हैं। आप जल्दी प्रसन्न होने वाले (आशुतोष) और भयंकर रूप धारण करने वाले (अभ्यंकर) और अविनाशी हैं। हे कैलाश में रहने वाले, आपको मेरा नमन है।
न मंत्र, न यंत्र, न तंत्र, न योगा
न ज्ञान, न ध्यान, न छप्पन भोगा
शरण में शम्भू प्रभु, मैं तुम्हारे
रहा हूँ, रहूँगा, तुम्हारे सहारे
हे शम्भू प्रभु! मैं न तो मंत्र, न यंत्र, न तंत्र, न योग, न ज्ञान, न ध्यान जानता हूँ और न ही मेरे पास छप्पन प्रकार के भोग हैं। मैं तो खाली हाथ आपकी शरण में आया हूँ। मैं हमेशा से आपके सहारे रहा हूँ और आगे भी सदैव आपके ही सहारे रहूँगा।
– पन्ना