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Tera Intezaar

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है।
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ एतराज़ होता है मैं अगर रौशनी में आता हूँ

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