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तुझसे रू-ब-रू हो लूँ

तुझसे रू-ब-रू1 हो लूँ, दिल की आरज़ू2 है,
कह दूँ तुझसे एक बार, तू मेरी जुस्तुजू3 है।

भँवरा बनकर भटकता रहा तेरे तसव्वुर 4में,
चमन में चारों तरफ़ फैली जो तेरी ख़ुशबू है।

जल ही जाता है परवाना होकर पागल,
जानता है, ज़िंदगी दो पल की गुफ़्तगू5 है।

दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल कैसे कहे तुझसे,
नहीं ख़बर मुझे, कहाँ मैं और कहाँ तू है।

शायर-ए-ग़म तो मैं नहीं हूँ मगर, दिलबर,
मेरे दिल से निकली हर नज़्म में बस तू है।

1. आमने-सामने; 2. इच्छा; 3. तलाश; 4. कल्पना; 5. बातचीत।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

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