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“अंतस् में है पीर”

अंतस् में है पीर
पीर का रोना रोकर
नहीं भला कोई बन पाया
है सब कुछ कर-कर
कदम- कदम दे साथ फिर
गया छोंड़ वह राह
उसकी राह निहारती
है प्रज्ञा दिन-रात
रात ये बड़ी निराली
सजी है महफिल सारी….

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