“अंतस् में है पीर” Pragya 3 years ago अंतस् में है पीर पीर का रोना रोकर नहीं भला कोई बन पाया है सब कुछ कर-कर कदम- कदम दे साथ फिर गया छोंड़ वह राह उसकी राह निहारती है प्रज्ञा दिन-रात रात ये बड़ी निराली सजी है महफिल सारी….