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अकेलापन

गलियों को छोड़ हम
इन्कलेभ में आ गए।
छोटे छोटे घर आज
महलों में छा गए।।
दूर हो गए चाचे – ताए
पड़ोसियों में छाया मतभेद।
पाकर अकेलापन में बन्धु
विनयचंद के मन में खेद।।

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