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अधूरी सी नज़्म

गीत बनकर तुम्हारी जिंदगी में आई थी
एक रोज ……..
गजल बनकर तुम्हारी
ज़िंदगी बन गई।

और रुबाई बनकर
आंखें भिगोई तुम्हारी…

एक दिन ख्वाब बनकर तुम्हारे
सपनों के खटखटाने लगी दरवाजे
और जगाने लगी तुम्हें रातों को….

नींद में भी तुम मुझे ही ढूंढते थे
और मेरे ही खयालों में खोए रहते थे….

पर न जाने किसकी नजर
हमारे प्यार को लग गई?

तुम तुम ना रहे और
हमारी जरूरत भी ना रही…

और मैं अधूरी सी एक नज़्म
बनकर रह गई….

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