अब भी मेरा नाम
अब भी मेरा नाम उनके अपनों में शुमार है
उनके हाथों के पत्थर को मेरा इंतज़ार है
ये चादर जरा आहिस्ते से संभल कर ही हटाना
ये फूलों से नहीं ,चुभते काटों से सजी मजार है
वो नाम भी मेरा लेते है और कसम भी खाते है
हम तो पहलू में उसके मिटने को कब से तैयार है
यक़ीनन उसके इरादों पे कोई शक नहीं मुझे
भरे ज़ख्मों को भी हिला देंगे मुझे ऐतबार है
अभी तो इब्तिदा है तेरे सितम की ‘अरमान’
तेरे सहने को पड़े कतार में अभी गम हज़ार है
अब भी मेरा नाम उनके अपनों में शुमार है
उनके हाथों के पत्थर को मेरा इंतज़ार है
राजेश’अरमान’ २१/०४/2012
वो नाम भी मेरा लेते है और कसम भी खाते है
हम तो पहलू में उसके मिटने को कब से तैयार है Nice
thanx rohan
nice one!!