ये अफवाह थी के समन्दर में डूब जाना था मुझे,
सच तो ये है के तैर कर उबर ही आना था मुझे,
ये ज़िद थी लोगों की के बाँध कर बेड़ियों में बाँधना था मुझे,
मगर तय था के हर बन्धन तोड़ कर उड़ ही जाना था मुझे,
लाख कोशिशे की शायद दोषी ठहराना था मुझे,
पर बेगुनाह ही था तो हर इल्जाम से बरी हो ही जाना था मुझे,
किसी की शय पर लगाकर राहों में रोड़े राहों से भटकाना था मुझे,
मगर ज़िन्दगी के सफर का “राही” था मैं तो गुजर ही जाना था मुझे॥
राही (अंजाना)