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आज कल सोंचता बहुत है दिल ये मेरा

पेश है आपकी खिदमत में:-
गज़ल
आज कल सोंचता बहुत है दिल ये मेरा
तुझे भूलूँ या कैद दिल में करूँ
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दिल लगा लूँ या जान छुड़ा लूँ तुमसे
आज कल सोंचता बहुत है दिल ये मेरा
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गज़ल सुना के सुलाये हैं मैनें जो एहसास
उन्हें जगा लूँ या सुला दूँ है बड़ी उलझन
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भूल जाना भी तूझे है ना आसान इतना
दिल में बसता है तू अर्से से तुझे नहीं है खबर
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तुझे भी इल्म है इस बात का नहीं मालूम
कितनी बेबस हूँ तेरे बिन तुझे नहीं है फ़िकर
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तुझे छुपा लूँ आँखों में,लिपट जाऊँ मैं
आज कल सोंचता बहुत है दिल ये मेरा।

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