जब कविता लिखने का कोई
मूड नहीं बन पाता है
मार सुड़ुप्पा चाय का प्यारे !
ये दिल आशु कवि बन जाता है
दो-तीन कपों में मैं तो पूरी
कविता लिख लेती हूँ
पाँच कपों में खण्डकाव्य और
निबंध का सृजन कर लेती हूँ
यदि होती कोई टेंशन है तो
चाय का सुट्टा मार के मैं
खुद को टेंशन फ्री कर लेती हूँ
यदि पी लूँ पच्चीस प्याला चाय
तो टोन में फिर आ जाती हूँ
महाकाव्य लिखकर ही मैं
नशे से बाहर आती हूँ…