आकाश-सी फैली
ख़ामोशियों में भी
ये कैसी अनुगुंज फैली है
इन स्याह-सी वीरान रातों में
तेरे आने की आहट सुनाई देती है ।
तू नहीं फ़िर भी
यह इन्तज़ार क्यूँ है
तुझसे ही सारी शिकायतें
फ़िर तुझीसे इक़रार क्यूँ है
मन की यह डोर
खींची तेरे पास आती है
तेरे आने की आहट सुनाई देती है ।