तेरे कदमों की आहट से खुश होती थी माँ तेरी,
आज लगे रहते हैं लोग तेरे कदम उखाड़ने के लिए,
कोई खुश नहीं होता आज तरक्की से तेरी,
लोग मौका ढूंढते हैं आज हर कदम काट खाने के लिए,
मिल रहा था लाखों का ताज मुझे सर पर लगाने को,
मैंने सर नहीं झुकाया अपना सम्मान गिराने के लिए,
कोई अक्स नहीं कोई साया नहीं,
कुछ लोग आते हैं ज़माने में बस आईना दिखाने के लिए,
बात सबको न बताओ अपने दिल की सुनो,
कोई आएगा नहीं आगे मरहम लगाने के लिए,
“राही” अनजाना है अभी अपनी पहचान के लिए,
निकला है अभी सफर में मन्ज़िल पाने के लिए॥
राही (अंजाना)