आज बहुत व्यथित थी
बार-बार निगाहें दरवाज़े
तक जाकर लौट आ रही थीं….
ना जाने कहाँ रह गए वो!
मेरा बेचैन मन
मुझे अधीर कर रहा था….
कहा तो था जल्दी ही
आ जाऊंगा
ना जाने कहाँ रह गए वो!
जितनी बार गली से
कोई आहट आती
मन की गति से भी जोर
मैं भागती
दरवाज़े पर निहारती
और हताश होकर
लौट आती…
ना जाने कहाँ रह गए वो!
तभी बाहर से आवाज आई
कहाँ हो बहना!
मन प्रसन्नता से
झूम उठा
आँखों में चमक आई
मेरी बेचैनी ने
मुझे छोंड़कर जाते हुए कहा
लो आ गया तेरा भाई…