“इक दास्ताँ अधूरी तुमको सुनाए कैसे”
इक दास्ताँ अधूरी तुमको सुनायें कैसे।
गिरती हुई दीवारे फिर से उठाए कैसे।।
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जैसे पढ़ी थी दुनिया वैसी नहीं हक़ीक़त।
सच जो है मैंने जाना खुद को बताएँ कैसे।।
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हर हर्फ़ में हमारी क्यूँ तेरी यादें बह रही है।
हम छिप रहें है खुद से तुमको बुलाएं कैसे।।
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ऐतबार करना मुश्किल है मौसमी अदा का।
कट जाती है पतंगे हम उनको उड़ाए कैसे।।
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रफ़्तार जिंदगी की बहुत ही तेज़ हो गई है।
हम ही नहीं है काबिल तुम्हें आजमाएं कैसे।।
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तन्हा मेरा सफर है न मंजिल है न किनारा।
साहिल कश्ती है भवँर में साहिल पे जाएं कैसे।।
@@@@RK@@@@
wah wah
Thanks
बहुत सुंदर