उलझा हुआ
कलमकार हूँ,
तमाम विषयों से घिरा
चयन की छटपटाहट में
लय से भटका हुआ हूँ।
शब्द में निःशब्द भर
मौन में गुंजायमान ला
अंकित करने में
असफल रहा हूँ।
ठिठुरते बचपन की व्यथा को
बेरोजगारी की पीड़ा को
किसान की उलझन को
बुजुर्ग की वेदना को,
व्यक्त करने में
असहाय सा रहा हूँ।
खुद न समझ पाया कि
किसके साथ खड़ा हूँ,
या बेबस सा पड़ा हूँ।
विसंगतियों से आंख मूँदकर
पीठ दिखा कर खड़ा हूँ।