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एक दीप जलाओ ऐसा

सौ दीप जला लो मंदिरों में
चाहे हजारे दीये जल तेरे आँगन में
जब तक मन की तम ना होंगे दूर
तब-तक है तेरे सारे दीये की रौनक सून ।।
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एक दीप जलाओ ऐसा
जिससे विकार दूर हो तेरे मन का
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झूठी शरीर की रौनक ढ़ल जाती है शामों तक
पर सच्चे दिलों मे दीपक जलती है कल्पो तक
दीपक जलाओ लेकिन जलो नहीं ईर्ष्या द्वेषों से
होगा तेरा कल्याण सिर्फ राम नाम गुण गाने से
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एक दीप जलाओ ऐसा
जिससे विकार दूर हो तेरे मन का ।।1।।
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वासना तो हावी रहता
सदा नरों के मनो में
पर जो नर इन्द्रिय दमन करता
उसके अंदर ही दिव्य ज्योत जलता
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एक दीप जलाओ ऐसा
जिससे विकार दूर हो तेरे मन का ।।2।।
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कामी नही, भोगी नही, लोभी नही,
तुम योगी बनो, तेजस्वी बनो
अपनी ज्वाला से तुम सारी दुनिया को चमकाओ
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एक दीप जलाओ ऐसा
जिससे विकार दूर हो तेरे मन का ।।3।।
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