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कितने ही ख़्वाब

जितने भी ख़्वाब मेरे झूठ के बहाने निकले,
उतने ही सच हकीकत के सिरहाने निकले।
जितने दुश्मन मेरे घर के, किनारे थे मौजूद,
उतने ही लोग ज़माने में, मेरे दीवाने निकले।
ढूढ़ते रहे जिन्हें समन्दर की लहरों में हमेशा,
वो तमाम ग़म, मेरे दिल के वीराने निकले।
जितने ही ग़म मुझे रास्ते को भटकाने निकले,
उतने ही खुशियों के सफर में मयखाने निकले।
कौन है जो मेरे ज़ख़्मो को समझ पाया है कभी,
हाय किसको हम, दास्ताँ अपनी सुनाने निकले।
उसको क्या मतलब है, मेरी कौम के हालातों से,
नेता जब निकले तो बस मौके को भुनाने निकले।
मैं अभी तक मदहोश सा हूँ, जो हंसी मय पीकर,
वो तेरी आंखों के जादुई, ख़ूबसूरत पैमाने निकले।
जो ये कहते थे मैं कौन हूँ, उनके किस काम का हूँ,
हाल ये है के अब, वो मुझको अपना बनाने निकले।
आज खोली जो मुद्दतों बाद, मुहब्बत की किताब,
देखो ये सफ़हा दर सफ़हा, कितने फ़साने निकले।
Raahi(अंजाना)

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