अब तक समझ नहीं पाया
खुद को कि
मैं प्यार का कवि हूँ
या नफरत का।
संयोग का कवि हूँ
या वियोग का,
उत्साह का हूँ
या निरुत्साह का।
लेकिन इतना समझ गया हूँ
कि केवल दो अक्षर का हूँ
ढाई अक्षर के प्यार शब्द
से अभी दूर हूँ,
इसलिए
तुम्हें अपना नहीं बना सकता
मजबूर हूँ।
क्योंकि
किसी और की ही आँखों का नूर हूँ,