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कैसे हैं

उम्मीदों के दरवाज़े पर
आस लगाये
बैठे हैं ।
गुजरोगे
जिन गलियों
से तुम फ़ूल
बिछाए बैठे
हैं।
एक दिन ऐसा भी
आएगा शायद
मेरे जीवन में
तुम हमसे
खुद आकर
पूंछो-और बताओ कैसे हैं ।

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