कोई आहट नहीं कोई
कोई आहट नहीं कोई आवाज़ नहीं
टूटा पत्ता हूँ कोई शाख नहीं
अपने हाथों से किया क़ैद खुद को
पंख तो हूँ मगर परवाज़ नहीं
कैसे खुद को बना दिया क़ाफ़िर
ज़िंदगी तुझसे मगर नाराज़ नहीं
चंद कतरे जो गिर जाएँ अगर
किसी समुन्दर को जिसकी चाह नहीं
इतने हिस्सों में बट गया ‘ अरमान’
लोग कहते तेरी संभाल नहीं
राजेश ‘अरमान’
अद्भूत कविता..
thanx
वाह