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क्या कभी किसी को देखा है ?

क्या कभी किसी को देखा है ? दर्द से छटपटाते हुए।
क्या कभी सुना है तुमने किसी को चुप-चाप चिल्लाते हुए।

कठिन बड़ा है उस बेटी की आह को सुन ना,
कठिन बड़ा है उस माँ के खयाल बुन ना।
कठिन बड़ा है उस मासूम की देखना सूरत,
कठिन है देखना ,बच्चों को कराहते हुए।
क्या कभी सुना है तुमने किसी को चुप-चाप चिल्लाते हुए।

कैसे कोई इतना बड़ा पाप कर सकता है?
ले नन्ही सी जान की जान ,इतने नीचे गिर सकता है?
कैसे कोई नहीं पिघलता फिर भी है?
जब दर्द मुझे होता है,ये किस्सा सुनाते हुए।
क्या कभी सुना है तुमने किसी को चुप-चाप चिल्लाते हुए।

वो बेटी जो कोख में अब तक रहती है,
अपने दर्द की खुद ही दास्तां कहती है,
तरसोगे एक दिन तुम बेटी की चाहत में ,
कहती है वो आखिरी पल खिलखिलाते हुए।
क्या कभी सुना है तुमने किसी को चुप-चाप चिल्लाते हुए।

आवाज़ कहाँ से आती ,वो कोख में है,
कैसे कहती पीड़ा को वो कोख में है,
हां बस हो गयी खत्म अभी वो कोख में है,
ना बच पाई।।। ना रो पाई , वो कोख में है,
अंदर ही करके खत्म,उसके अंश निकाले जाते हैं।
फिर पत्थर सी मूरत माँ को घर लेकर आ जाते हैं
एक बेटी की, बेटी की, जान ली गयी मुस्कुराते हुए,
क्या कभी सुना है तुमने किसी को चुप-चाप चिल्लाते हुए।

क्या कभी किसी को देखा है ? दर्द से छटपटाते हुए।
क्या कभी सुना है तुमने किसी को चुप-चाप चिल्लाते हुए।

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