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क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा

क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा
जब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं,
हम तुम्हारे काबिल नहीं,
तुम हमारे मुनासिब नहीं ।।
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क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा
जब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं ।।1।।
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सुना है रिश्ता बराबरी में होता
लेकिन मेरा दिल अब किसी पे ना मरता
तु जो चाहे कर ले सितम
मैं सब-कुछ सह लूँगा सनम ।।
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क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा
जब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं ।।2।।
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ये रिश्ता है,
जुटेगा उसी से
जो लिखा है उसने
फिर क्यूँ हम किसी से गिला करे ।।
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क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा
जब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं ।।3।।
कवि विकास कुमार

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