खुशी तलाश की, तो मिल ही गई
दर्द के नीचे दब गई थी कहीं।
छेड़ बैठे वो अपना ही किस्सा
बीच में बात मेरी, रह ही गई।
एक दीवार सी थी दोनों में
गिराने बैठे, तो फिर गिर भी गई।
मुद्दतों बाद वो घर आये मेरे
चलो अपनी दुआ भी, सुन ली गई।
सारी यादों की खूब कस कर के
गठरी बांधी थी,मगर खुल ही गई।
कश्ती तूफां से निकल ही आई
किसी तरह भी चली, चल ही गई।
………..सतीश कसेरा