समाज में हो रहा गलत
तेरे भीतर की आत्मा को
झकझोरता नहीं क्या
किसी निरीह की चीत्कार
किसी भूखे की भूख
प्यासे की प्यास
जीवन में व्याप्त दर्द
तेरे भीतर की आत्मा को
झकझोरता नहीं क्या,
शोषित, उत्पीड़ित
उपेक्षित वर्ग के
तिरस्कार का दर्द,
भेदभाव की बात
भूख से बिलखते
बच्चों की रात
उर का दर्द
तेरे भीतर की आत्मा को
झकझोरता नहीं क्या।
घूसखोरी व भ्रष्टाचार
युवाओं का
रह जाना बेरोजगार,
निरीहों पर अत्याचार,
तेरी आत्मा को
झकझोरता नहीं क्या।
झकझोरता है तो
उठा ले लेखनी
लेखनी में पैदा कर धार
गलत पर कर प्रहार,
आवाज उठाने को
तेरा मन झकझोरता नहीं क्या।