अपने मन का हर भाव लिखा करती हूं,
कभी-कभी दुख तो कभी,
अनुराग लिखा करती हूं।
छोटी-छोटी मेरी खुशियां
लिखने से बड़ी हो जाती हैं।
बड़े-बड़े दुख के सागर,
फ़िर मैं पार किया करती हूं।
कभी हंसाती हूं आपको,
अपनी कविता से मैं,
कभी दुखित हो कर एकान्त में
नेत्र नीर बहा लिया करती हूं।
कभी जुदाई में आंखें सूनी,
कभी नेह लिखा करती हूं।
कभी बुनती हूं ख्वाब सुहाने रातों में,
कभी भोर के गीत लिखा करती हूं।
हां मैं भी प्रीत लिखा करती हूं।
कुछ अधूरी तृष्णाएं हावी होती हैं मन पर,
उन्हीं तृष्णाओं की खातिर,
मन-मीत लिखा करती हूं,
गीता हूं मैं गीत लिखा करती हूं।।
_____✍️गीता