गुथियाँ सुलझाने में
गुथियाँ सुलझाने में
उलझ जाता जीवन
पकड़ के कान
खींचता है जीवन
कभी इस तरफ
कभी उस तरफ
सीधी रेखाएं
खींचता हूँ जीवन की, पर
जा के मिल जाती है ये
हाथ की टेढी रेखाओं से
मेरी रेखाएं दब जाती
उभर के आती बस
हाथ की रेखाएं
जिसे मैंने नहीं खींचा
जिस पर मेरा अंकुश नहीं
एक खींचतान चलती
दोनों रेखाओं में
मैं बच्चो की तरह
पाल रहा हूँ
दोनों रेखाओं को
और लगा रहता हूँ
गुथियाँ सुलझाने में
राजेश अरमान
वाह