गैया तुम तो मैया हो
है दूध अमृत तुम्हारा
जीने एक सहारा
जिससे पोषित होता है
मन और शरीर हमारा।
हर तरह काम आती हो
जीना हो या मरना हो
हर जगह जरूरत पड़ती
शुभ-अशुभ कर्म करना हो।
दूध, दही, घी, गोबर
गोमूत्र सभी कुछ पावन
जहाँ बंधी रहती हो
पावन होता है आंगन।
कहते ज्ञानीजन यह भी
भवसागर पार लगाती हो
इहलोक में अमृत देती
वह लोक सजाती हो।
गैया तुम तो मैया हो
है दूध अमृत तुम्हारा
जीने एक सहारा
जिससे पोषित होता है
मन और शरीर हमारा।