चलो साथी फिर से गांव चलते है
कुछ बचें होंगे पेड़ गर वहां छांव ढूंढते हैं
आम भी तो आए होंगे,जामुन भी इतराए होंगे
बचपन के फिर से वो पल ढूंढते हैं
चलो साथी फिर से गांव चलते हैं
पुरानी नीम के नीचे सब चौपाल लगाएंगे
बड़की काकी को फिर से अपने पीछे दौड़ायेंगे
बहुत रह लिया परदेस में ,अब अपने घर को चलते हैं
चलो साथी फिर से गांव चलते हैं
रखा होगा मां ने अचार , चटकारे लगाएंगे
कोयल की कुहू को हम भी दोहरायेंगे
गांव जाती सड़क पर फिर दौड़ लगाएंगे
उड़ गए हैं जो रंग जिंदगी के उन रंगों में रंगते हैं
चलो साथी फिर से गांव चलते है
गांव से निकले हैं तो खोई पहचान है
हम कल भी अजनबी थे और आज भी गुमनाम हैं
इस खाली कैनवास पर यादों को सजाते हैं
चलो साथी फिर से गांव चलते हैं।