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चल पड़े हैं वीर देखो शरहद की ओर

लेके काँधे पे बन्दूक
दिल में देशप्रेम अटूट
चल पड़े हैं वीर देखो शरहद की ओर।
न हीं जीवन की मोह
न हीं परिजन बिछोह
देश के खातिर दिया सब कुछ है छोड़।
चल पड़े हैं वीर देखो शरहद की ओर।।
ये हमारे वीर सिपाही
लड़ने में न करे कोताही
जलती धरती अंबर बरसे घनघोर।
चल पड़े हैं वीर देखो शरहद की ओर।।
नहीं किसी से वैर है
न अपना कोई गैर है
भारत माँ की रक्षा में है न कोई थोड़।
चल पड़े हैं वीर देखो शरहद की ओर।।
विस्तारवाद नहीं इनकी चाह
विकासवाद के चलते राह
५६ इंच की सीना देख यार पुड़जोर।
चल पड़े हैं वीर देखो शरहद की ओर।।
कारगिल में था वैरी रोया
रोया था गलवान में।
दुश्मनों के छक्के छुराए
डरे नहीं बलिदान में।।
‘विनयचंद ‘ इन वीरों के दिल से लागे गोर।
चल पड़े हैं वीर देखो शरहद की ओर।।

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