चील और कौवो सा नोचता रहता संसार है,
ये कैसा चोरों का फैला व्यापार है,
दहेज के नाम पर बिक रही हैं नारियाँ कैसे,
ये कैसा नारियों को गिरा कर झुका देने वाला हथियार है,
न चाह कर भी बिक जाती है जहाँ अपनी ही हस्ती,
ये मोल भाव का जबरन फैला कैसा बाज़ार है॥
राही (अंजाना)