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छोड़कर इन आंसुओं को

छोड़कर इन आंसुओं को,
भाग ना सके।
और थाम भी ना सके।
गिरते रहे उसके बूंदों की तरह,
और मौसम जवां करते रहे।
जमी कुछ पथरा गई थी, इन आंखों की।
बिखरते रहे और इसे संदल करते रहे।

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