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जीवन परिभाषा

धर्म ईमान -इन्साफ को मानकर
आदमी बनकर तुम जगमगाते रहो
त्याग से ही मनुज बन सका देवता
देवता बन सबों में समाते रहो ||
न घबराओ तुम संघर्षों से कभी
तूफानों में भी उगता तारा है
चलते चलते थक मत जाना कहीं
विश्वास जगत का एक सहारा है
पथ की बाधा न होगी कहीं
सिर्फ आशा का दीप तुम जलाते रहो ||
शान्ति मिलती नहीं मन को कभी
काया जब तक ,इच्छाओं की दासी है
फैलती दीप्ति व्यक्तित्व की ,ढोंग आडम्बरों से नहीं
ईश्वर अन्तर्यामी ,घट घट वासी है
धन सम्पत्ति वैभव पास होगा तेरे
बिन सन्तोष न होती ,दूर उदासी है
रूप जीवन का तेरा निखर जाएगा
आत्मदर्पण सदा तुम ,निहारते रहो ||
तंगदिली के चकमे में न आना कभी
ठोकरें उसके सर पर जमाते रहो
धन के मद में न अन्धे बनो भूलकर
हाथ दुःख में सबों के बंटाते रहो
ये महल और दुमहले
बंजारों के डेरे हैं
दूसरों के लिए चोट खाते रहो ||
‘प्रभात ‘ सम्प्रदाओं की सीमाओं का ,न कोई अर्थ है
रूढ़ियों की कगारों को ढहाते रहो
न परतंत्र हो साँस नारी की कोई
अशिक्षित इरादों को मिटाते रहो ||

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