Site icon Saavan

जो भी लिखता है मन

जो भी लिखता है मन
स्वयं के लिए,
प्यार-नफरत के भाव
खुद के लिए।
उसे न जोड़ना
कभी भी
अपने भावों के लिए
अपनी चाहत के लिए।
अलग ही रास्ते हैं
न कोई वास्ते हैं,
न कोई दूरियाँ
न करीबियाँ हैं।
मन के जो भाव लिखे
लिखा जो दर्द यहां
वो स्वकीय नहीं
अनुभूतियां हैं।
परानुभूतियों को
उतारा कागज पर
न समझो कि
लिखा किस पर है।
खुद के सुख के लिए है
सृजन यह,
खुद की रोमानियत का
गीत है यह।
गा रहा आँख बंद कर
सुरीली- बेसुरी,
खुद के सीने में
चुभा कर के छुरी।
निकलती वेदना को
लिख-लिख कर
दर्द दूजे का
खुद में सह सह कर,
जो भी सृजित हुआ
वो कहता है,
बिना किसी को किये
लक्षित वह,
खुद ही खुद में
मगन सा रहता है।

Exit mobile version