‘गुज़री कुछ यूँ कि अब तन्हाई से डर लगता है,
हमें तो अपनी ही परछाई से डर लगता है..
गहराई अब तो समंदर की बेअसर हैं यहाँ,
हमें तो इश्क की गहराई से डर लगता है..
इक अदा थी जो गिरफ्तार कर गई हमको,
आजकल हर हसीं अंगड़ाई से डर लगता है..
जान पहचान ने ही दर-बदर किया हमको,
अब तो हर शख्स की आशनाई से डर लगता है..’
– प्रयाग
मायने :
आशनाई – पहचान