तन्हाई के आलम में जब भीड़ से हट कर देखा,
सोंच का समन्दर कितना गहरा है ये अनुभव कर देखा,
चलते ही जाओ राहों पर ये जरूरी नहीं,
दो पल रुका और ठहरकर एहसास कर देखा,
दिन के उजाले और रात के अँधेरे में जो ना देखा,
आज शाम के धुंधले नजरों में यूँ देखा॥
राही (अंजाना)
