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तुम्हारी व्यथा

कितनी व्यथा है तुम्हारी जो कम होने का नाम ही
नही लेती, आंख मेरी नम कर जाती
रोटी से शुरू हुई पलायन तक गई
पर मौत पर जा कर रुकी
तुम्हारी उदर-ज्वाला संग जंग
आंख मेरी नम कर जाती
हजारों मील पैदल चले,पांव मे छाले पड़े
पर गांव तक पहुँच ना पाऐ
तुम्हारी जड़ो को छूने की कसक
आंख मेरी नम कर जाती
हाथगाड़ी से गृहस्थी को ढ़ोते देखा
बैल की जगह जुटते देखा
रेल की पटरी पर मरते देखा
तुम्हारी मिट्टी में मिलने की कहानी
आंख मेरी नम कर जाती
नन्ही सी बच्ची की अंगुली थामे गर्भवती औरत
को मीलों चलते देखा, मासूमियत और मजबूरी
से भरे चेहरे को देखा
तुम्हारी जीवन और मृत्यु की संघर्ष यात्रा
आंख मेरी नम कर जाती
कितनी व्यथा है तुम्हारी जो कम होने का नाम ही
नहीं लेती, आंख मेरी नम कर जाती

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