तू न समझे बस यही दुआ है मेरी,
समझ में अक्सर दिल जला करते हैं।
तू नासमझ है और न ही तू समझना कभी ,
न दिल मेरा लगे तुझसे और , न तू लगाना कभी।
जख्म जो सूख गया है मेरा, न अब तू गलाना उसे ,
दिल जो टूटा है मेरा, तू दिल से न लगाना उसे।
दिल जो लगा तो हंसी रात ये गुजर जाएगी,
और सुबह होते ही तू आसमान में उड़ जाएगी।
समझ के भी नासमझ बनु में, और तू नासमझ ही रहे,
बस इतनी सी दुआ है मेरी
– शिवम् दांगी