आज ओढ़ ली थकान की चादर कुछ इस तरह,
के हफ़्तों बाद मिली हो किसी को फुरसत जिस तरह,
जागता ही रहा हो सफर में ज़िन्दगी के कोई जिस तरह,
आज सोया हूँ ऐसे के बरसों से करवट बदली ही ना हो किसी ने जिस तरह,
देखे ही ना हों नींदों में ख्वाब किसी ने उम्र भर जिस तरह,
आज जागते हुए भी ख़्वाबों में भटकता है ‘राही’ उस तरह॥
राही (अंजाना)