लड़कपन की बात ही कुछ और थी, तब तो मेरी भी आँखों में सपने सुहाने थे !
हाथों में हाथ डाल कर, सीखेगी दुनिया हमसे प्यार करना, कुछ ऐसे वादे हमारे थे!
चलता तो रहा मैं सिर्फ उसको देख कर, उस पर विश्वास कर, अनजानी सी राहो पर,
पर छोड़ अकेला मुझे वो चला ही गया, बिना कुछ बताये खुद की बनाई हुई नयी राहो पर!!
ना जाने ऐसा क्या था उसी में, जो टूट कर मैं इतना बदल गया,
शराब के नाम से नफरत करने वाला, आज उसी में सिमटता रहा,
देर– सबेर तक यूँ ही मैं नशे में अकसर चूर रहने लगा,
एक दिन ना जाने कब मेरी आँख लगी और मैं सो गया,
जब देखा ख्वाब तो, वो मेरे सामने खडी थी,
उसकी आँखों से बह रही आंसुओ की लड़ी थी!!
बोली, तुम्हे छोड़ कर मैं बहुत पछता रही हूँ,
पर फ़िक्र मत करो, तुम्हे भी अपने पास बुला रही हूँ!!!
जब टुटा ख्वाब का ख्वाब, तब मैं सुन्न पड़ा था,
मेरा पार्थिव जिस्म धरती पर बेसुध सा पड़ा था!!
आस पास में मेरे, लोगों का मेला सा लगा था,
उसी बीच में मेरी माँ का तो रो रो बहुत बुरा हाल था,
किसी कोने में खड़ा छोटा भाई भी मुझे धिक्कार रहा था!!
बाबा तो मानो बेजान से हो गये थे,,
बाकी बचे लोग मुझे नहला रहे थे,
देखते ही देखते चार लोगों ने मुझे अपने कंधो पर रख लिया,
थोड़ी देर में ही सफ़ेद कपडे में लपेट कर लकड़ी से ढक दिया,
कुछ लोग मेरी अच्छाइयों के बारे में एक दूसरे को बतला रहे थे,
इसी बीच घरवाले मेरे शरीर को अग्नि के हवाले करवा रहे थे,
ज्यों ही लगी मेरे तन में आग, फट से मेरी आँख खुल गयी,
सपना था ये सोच कर, मेरे रोम–रोम की हर एक कली खिल गयी,
तब मुझे ये समझ आई कि, ये जिंदगी तो बस गिरवी हैं,
इस पर माँ–बाप, भाई–बहन, दोस्त सब का हक हैं,
यह सिर्फ एक माशूका के इर्दगिर्द नहीं सिमटी हैं,
ज़िन्दगी की क्या कीमत हैं, एक सपने ने मुझको सिखा दिया,
दर्द तो अभी भी बहुत होता हैं पर,
दर्द को ज़लील कर फिर से मुसकराना जीना सिखा दिया,